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बबिता व ललिता ने पेश की अनोखी मिशाल, बनी आधी आबादी का आर्दश


-अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष

बलिया। वैसे तो वर्तमान में महिलाएं पुरुषों से किसी क्षेत्र में पीछे नहीं है,लेकिन इससे भी इत्तर कुछ ऐसी शख्सियतें होती है,जो समूची कौम के लिए रोल माडल बन जाती है। आज हम आपको बलिया जनपद की दो ऐसी ही महिलाओं की कहानी से रुबरु करा रहे है, जिन्होंने समाजिक विरोध के बावजूद अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित रही और कल तक विरोध करने वाला समाज आज उनकी अगवानी में पलक पावड़े बिछा रहा है।




मनियर ब्लाक की ग्राम पंचायत सरवारककरघट्टी की रहने वाली बबिता देवी आशा की है, जिन्होंने अपने क्षेत्र में स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाओं को घर-घर तक पहुचाने में अपना अमूल्य योगदान दिया है। 60 से अधिक गंभीर एनीमिया से ग्रसित महिलाओं का सुरक्षित प्रसव कराया,100 से ऊपर महिलाओं को प्रोत्साहित कर नसबन्दी उनके द्वारा कारवाई गयी।




 वह बताती हैं कि आशा बनने से पहले इस क्षेत्र में सरकारी अस्पताल में सुविधा लेने से कतराते थे और कहते थे कि स्वास्थ्य केन्द्रों पर कभी डाक्टर नहीं मिलते, जिससे उन्हंे प्राइवेट अस्पताल ही जाना पड़ता था। लेकिन धीरे-धीरे जब बबिता ने घर-घर जाकर योजनाओं और कार्यक्रमों के बारे में बताना प्रारम्भ किया तब से लोगों में बहुत अधिक बदलाव आया है। 
बबिता वर्ष 2007 से आशा बहू के रूप में जुड़ी। उस समय उनकी उम्र मात्र 24 वर्ष थी। बबिता देवी की शादी सन 2000 में हुई 2002 में एक बच्चा हुआ, गर्भावस्था के दौरान उन्हें बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ा, इसी दौरान उन्होंने निश्चय किया कि गर्भ अवस्था के दौरान उन्होंने जिन परेशानियों का सामना किया वो किसी और को जानकारी के अभाव में न करने पड़ें।बबीता को बेहतर कार्य के लिए सरकार द्वारा  तीन बार सम्मानित किया गया है।




कुछ ऐसी ही कहानी मनियर ब्लाक के ग्राम पंचायत सुल्तानपुर की रहने वाली ललिता देवी ‘आशा’ की हैं। जिन्हांेने अपने क्षेत्र में स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाओं को घर-घर पहुंचाने का कार्य बखूबी निभाया। 40 से अधिक गंभीर एनीमिया से ग्रसित महिलाओं का सुरक्षित प्रसव कराने, सरकार द्वारा समय-समय पर चलने वाले अभियान पल्स-पोलियों,  मातृत्व सुरक्षा कार्यक्रम, राष्ट्रीय क्षय नियन्त्रण कार्यक्रम, मिशन इन्द्रधनुष, खसरा-रूबेला आदि में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती है।क्षेत्र में परिवार नियोजन की स्थायी विधि महिला नसबंदी करवाने में भी उनका काफी योगदान रहा है। अब तक इन्हांेने 70 से भी अधिक महिलाओं को प्रोत्साहित कर नसबंदी करा चुकीं हैं।



ललिता देवी वर्ष 2007 से आशा बहू के रूप में कार्य कर रही हैं। उस समय उनकी उम्र मात्र 25 वर्ष थी, कम उम्र और समाज के ठेकेदारों ने प्रारंभ में बहुत अवरोध खड़ें किये परन्तु कुछ कर गुजरने की चाहत ने उन्हें रुकने नही दिया। ललिता देवी के कार्यों से उनके क्षेत्र के आस-पास की सभी आशा बहू बहुत प्रभावित हैं और वह सभी आशाओं के लिए प्रेरणा का श्रोत बनी हुईं है। सरकार द्वारा जब आशा संगिनी का चयन होना प्रांरभ हुआ तो क्षेत्र की सभी आशाओं ने मिलकर निर्विरोध रूप से ललिता देवी को अपनी आशा-संगिनी मान लिया और किसी अन्य ने आवेदन नहीं किया, इस तरह वह आशा संगिनी बनी। उन्हंे अब अपने साथ-साथ 20 आशाओं के क्षेत्र में भी स्वास्थ्य सेवाओं को सुनिश्चित करने का मौका मिला,जिसे वह बखूबी निभा रही है।


By-Ajit Ojha

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