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राजनीतिक दलों की खामोशी से सलेमपुर में पसरा सियासी सियापा

मनियर( बलिया)। यूँ तो आगामी लोकसभा चुनावों के परिप्रेक्ष्य में देश में सियासी हलचलें तेज हो गई है, लेकिन बात लोकसभा क्षेत्र सलेमपुर की करें तो अबतक यहाँ सियासी सन्नाटा सा पसरा नजर आ रहा है। कारण कि विभिन्न दलों द्वारा प्रत्याशी के नामों के घोषणा न होने तथा नए चेहरे की दबी जुबान चर्चाओं ने फिलहाल लोगों को एक तरह से वक्त का इंतजार करने पर मजबूर कर दिया है।इसी वजह से चुनाव रफ्तार नहीं पकड़ रहा है।अौर जनता प्रत्याशी के चेहरे आने के इन्तजार में हैं। यही वजह है कि विभिन्न दलों के समर्थक चुनावी चेहरे से इतर फिलहाल पार्टी के चुनावी एजेंडे पर ही बात कर रहे है। गौरतलब हो कि सलेमपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र प्रदेश की 80 लोकसभा क्षेत्रों में 71वें नम्बर की सीट है।


 इसके अंतर्गत पाँच विधानसभा क्षेत्र आते है जिनमें से तीन बलिया जिले व दो देवरिया जिले की सीटें है। प्रथम आम चुनावों के बाद से लेकर सत्रहवीं बार होने वाले चुनावी महासंग्राम  के चुनाव परिणाम पर नजर दौड़ाए तो पाते है कि 7 बार ये सीट कॉग्रेस के खाते में रही पर पिछली बार मोदी लहर में सारे अनुमानों को झूठलाते हुए कमल ने पहली बार अपनी जोरदार उपस्थिति दर्ज कराते हुए पहली बार इस सीट पर अपना खाता खोला था । तमाम दावों के बीच जमीनी स्तर पर आज भी ये लोकसभा क्षेत्र कई बुनियादी सुविधाओं के लिए जोर-आजमाईश करने पर मजबूर है।


 जातीय समीकरण बनाम विकास की राजनीति में कमोबेश यहाँ जातीय समीकरण ही ज्यादा प्रभावी दिखता रहा है। बेहतर सड़क,बिजली,पानी,चिकित्सा,शिक्षा और रोजगार के लिए आज भी यहाँ के मतदाता टकटकी लगाए हुए है मगर चुनावी जानकारों की मानें तो पुरैने मुद्दे ही इसबार भी प्रमुख चुनावी मुद्दे होंगे जिसके आधार पर यहाँ के मतदाता प्रत्याशियों के मुकद्दर का फैसला करेंगे । इतिहास के पन्नों पर सलेमपुर उत्तर प्रदेश की सबसे पुरानी तहसीलों में से एक रही है जो कि सन् 1939 में अंग्रेजी शासन में अस्तित्व में आई । बरहज, रुद्रपुर और भाटपार रानी तहसीलों के बनने से पहले सलेमपुर सबसे बड़ी तहसीलों में से एक था ।


 बावजूद इसके विकास की दौड़ में इसकी मंद गति यहाँ के लोगों के लिए हमेशा अफसोस का सबब बना रहा । जानकारों की मानें तो कभी धार्मिक और ऐतिहासिक रुप से समृद्ध रहे सलेमपुर में इसबार का चुनाव भी हमेशा की तरह दिलचस्प होने जा रहा है। 1952 में हुए पहले आम चुनावों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विश्वनाथ रॉय ने यहां से जीत हासिल की थी, 1971 तक कांग्रेस ने लगातार पांच बार सलेमपुर की सीट पर कब्ज़ा किया लेकिन 1977 में भारतीय लोकदल के राम नरेश कुशवाहा ने कांग्रेस का विजय रथ रोका और यहां से पहले गैर-कांग्रेसी सांसद बने । हाँलाकि इसके बाद 1980 और 1984 में काँग्रेस के रामनगीना मिश्र के साथ ही ये सीट पुन: काँग्रेस के पाले में चली गई। 


1989 और 1991 में जनता दल के हरिकेवल प्रसाद ने यहां दो बार जीत दर्ज की ।1996 में समाजवादी पार्टी के हरिवंश सहाय ने जनता दल की लगातार तीसरी जीत के सपनों पर पानी फ़ेर दिया।1998 में हुए चुनावों में हरिकेवल प्रसाद ने समता पार्टी के टिकट पर जीत कर सपा से अपनी पिछली हार का बदला ले लिया परन्तु 1999 में बब्बन राजभर ने सलेमपुर में बहुजन समाज पार्टी को पहली बार जीत दिलाई । 2004 में सपा और 2009 में बसपा ने इस सीट पर कब्ज़ा किया लेकिन साल 2014 में यहां पर भाजपा का कब्जा हो गया और रविन्द्र कुशवाहा रिकॉर्ड मतों से यहां से लोकसभा सदस्य बने।अब सत्रहवीं वार होने वाले इस चुनावी महासंग्राम का सेहरा किसके सिर पर जनता बाँधती है लेकिन इस बार का संग्राम दिलचस्प होगा

रिपोर्ट राम मिलन तिवारी

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