आडवाणी की तरह मुरली मनोहर जोशी की भी होगी चुनावी राजनीति से छुट्टी !
नई दिल्ली। लालकृष्ण आडवाणी और बी सी खंडूड़ी जैसे दिग्गज नेताओं को टिकट न देकर बीजेपी ने साफ कर दिया है कि वह अब बुजुर्गों की जगह नौजवान पीढ़ी को चुनाव मैदान में उतारना चाहती है। इससे पहले 75 की उम्र वाले मंत्रियों को मंत्रिपरिषद से हटाकर ही नरेंद्र मोदी सरकार ने अपनी रणनीति साफ कर दी थी। अब जिस नाम को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है वह है, अटल आडवाणी के बाद पार्टी के सबसे कद्दावर नेता माने जाने वाले मुरली मनोहर जोशी का। यह अभी तक साफ नहीं हो पाया है कि जोशी इसबार भी कानपुर से ही चुनाव लड़ेंगे या उनकी सीट बदली जाएगी अथवा वो भी महज पार्टी के मार्गदर्शक मंडल के सदस्य रह जाएंगे।
पार्टी ने उत्तर प्रदेश के लिए अबतक जिन उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की है, उनमें 85 वर्षीय मुरली मनोहर जोशी का नाम नहीं है और न ही कानपुर सीट से किसी दूसरे के नाम का ऐलान हुआ है। खबरों के मुताबिक पार्टी इसबार उनकी जगह किसी युवा और मजबूत चेहरे को कानपुर से टिकट देने की सोच रही है। गौरतलब है कि कानपुर सीट पर 2014 से पहले कांग्रेस के दिग्गज श्रीप्रकाश जायसवाल दो बार चुनाव जीत चुके हैं और स्थानीय होने के नाते उनका यहां काफी दबदबा भी है। दरअसल, जोशी को राज्य में एक प्रभावी ब्राह्मण चेहरे के रूप में देखा जाता है, ऐसे में उनका टिकट काटने से पहले पार्टी को उसकी भरपाई के बारे में भी सोचना जरूरी है।
गौरतलब है कि देवरिया से पार्टी सांसद और 77 वर्षीय बुजुर्ग नेता कलराज मिश्र पहले ही चुनाव लड़ने की अनिच्छा जाहिर कर चुके हैं। इनके अलावा उत्तराखंड के भगत सिंह कोश्यारी भी अब चुनाव नहीं लड़ना चाहते। इसी तरह पार्टी के धाकड़ नेता शांता कुमार, बी सी खंडूड़ी और करिया मुंडा को भी चुनाव में नहीं उतारा जा रहा है, जो 80 साल की दहलीज पार कर चुके हैं। ऐसे में ये देखने वाली बात होगी कि मुरली मनोहर जोशी खुद चुनाव से किनारे होने का फैसला लेते हैं या उनके नाम पर मोदी और शाह अपनी नीति में थोड़ा ढील देते हैं?
गौरतलब है कि देवरिया से पार्टी सांसद और 77 वर्षीय बुजुर्ग नेता कलराज मिश्र पहले ही चुनाव लड़ने की अनिच्छा जाहिर कर चुके हैं। इनके अलावा उत्तराखंड के भगत सिंह कोश्यारी भी अब चुनाव नहीं लड़ना चाहते। इसी तरह पार्टी के धाकड़ नेता शांता कुमार, बी सी खंडूड़ी और करिया मुंडा को भी चुनाव में नहीं उतारा जा रहा है, जो 80 साल की दहलीज पार कर चुके हैं। ऐसे में ये देखने वाली बात होगी कि मुरली मनोहर जोशी खुद चुनाव से किनारे होने का फैसला लेते हैं या उनके नाम पर मोदी और शाह अपनी नीति में थोड़ा ढील देते हैं?
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