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ओमप्रकाश के बागी तेवर ने घोसी में बिगाड़ा भाजपा का खेल



चिलकहर( बलिया)। जैसे जैसे चुनाव की तिथि नजदीक आ रही है, वैसे वैसे प्रत्याशियों  की चहल कदमी तेज होती जा रही है जिससे सियासी पारा लगातार ऊपर चढ़ रहा है। यही कारण है कि घोसी लोकसभा क्षेत्र में राजनीतिक तापमान अब मतदाताओं को भी अपनी तपिश से प्रभावित करता दिख रहा है ।  हालांकि भाजपा को छोड़ अन्य दल अपने अपने मतदाताओं को रिझाने एवं साधने में लगे हुए हैं।बिन प्रत्याशी बीजेपी जहां विकास का मुद्दा तथा मोदी लोकप्रियता के सहारे लोगों को घोसी फतह करने की अपील से लोकसभा घोसी फतह करना चाहती है, वही सपा बसपा गठबन्धन ने अतुल राय को प्रत्याशी देकर अगड़ी जाति के वोटरों को सरप्लस कर चुनावी हलचल बढ़ा दी है।

घोसी लोकसभा में पिछड़ा वोट अधिक होने के चलते भाजपा अति पिछड़ा व अतिदलित की चर्चा लोगों के बीच जोरदार तरीके से रख दे रहे है। बावजूद इसके सपा बसपा  गठबंधन के लोग  अपनी शक्ति दिखाने को आतुर है। जबकि कांग्रेस ने अपना पूर्व सांसद बालकृष्ण चौहान को प्रत्याशी बनाकर चौहान कार्ड खेला है। बालकृष्ण के मैदान में आते ही मुकाबला रोचक हो गया है । वही विधान सभा चुनाव में बीजेपी की सहयोगी पार्टी के रूप में कार्य करने वाली सुभासपा ने बागी तेवर अपनाते हुए महेन्द्र राजभर को टिकट दिया है।अब देखना दिलचस्प है कि कौन बनता है घोसी लोकसभा का सिरमौर।जनता में उत्साह की कमी तथा रोष यह स्पष्ट नहीं कर पा रही है कि जनता का मत कहा है। कहीं कोई बाहरी भीतरी की बात कर रहा है तो कही कोई गांवों में विकास नही होने से नाराज है।

 निवर्तमान सांसद हरिनारायण राजभर के प्रति आम मतदाता का कहना है कि कार्यकाल में आमजन की समस्याओं का ख्याल ही नहीं रहा तो उनके साथ घुमने वाले भाजपाजन दुसरे इलाके में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते देखे जा रहे है।जनता का मूड भांपना मुश्किल है।लोगों की चुप्पी कही न कही कुछ अप्रत्याशित परिणाम के संकेत दे रही है। सुभासपा के बागी तेवर ने तो बीजेपी की रणनीति पर लगभग पानी फेर दिया है। महागठबंधन की भी राह में बाहरी प्रत्याशी तथा लोगों में अविश्वास तथा रसड़ा से बसपा विधायक के साथ रह रहे लोगों का मौन साधना लोगों के बीच चर्चा बनता जा रहा है। हालांकि बसपा विधायक बैठकें कर अपने लोगों को गठबंधन धर्म निभाने की नसीहत देते देखे जा रहे है। लेकिन उनके समर्थकों की चुप्पी आमजन के बीच भ्रम पैदा कर रही है।

अब देखना यह है कि 2014 लोकसभा की तरह क्या मोदी मैजिक चलता है, या फिर बसपा-सपा  के कार्यकर्ता गठबंधन प्रत्याशी के पक्ष में लामबंद होते है। अगर ऐसा हुआ तो यह भाजपा के लिए ख़तरे की घंटी होगी। यह तो अब आने वाला समय ही  बताएगा। बावजूद इसके सभी दलों के लोग व  कार्यकर्ता अपने प्रत्याशी की जीत का दावा करते नजर आ रहे है। वही योगी तर्ज पर महंथ कौशलेन्द्र गिरी हर वर्ग के लोगों को एक करते गांवों में देखे जा रहे है। कुल मिलाकर घोसी लोकसभा का चुनाव  धीरे धीरे दिलचस्प होता जा रहा है। हालांकि वास्तविक तस्वीर तो भाजपा प्रत्याशी के आने के बाद ही स्पष्ट होगी, लेकिन गांव की गलियां व बाजारों में  कयास बाजी का दौर बदस्तूर है।

रिपोर्ट संजय पांडे

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