तो क्या यूं ही जाती रहेगी गरीबों के सगे-संबधियों की जान
-रिक्शा चालक के बेटे की मौत दिखाया सरकारी तंत्र को आईना
बलिया। बीती रात बारिश में मजबूरी के कारण भीग रहे रिक्शा चालक के पुत्र का उपचार के अभाव में मौत हो जाना, निश्चय ही हृदय विदारक घटना है। जिसने घुमंतू नौजवानों की भी आंखें नम कर दीं। लेकिन सरकारी सुविधाओं और सरकारी अस्पताल की व्यवस्था के साथ-साथ सन 2011 की जनसंख्या के आधार पर जारी किए जा रहे आयुष्मान भारत योजना की कलाई भी खोल कर रख दी है। घटना ने गरीबी रेखा से नीचे का जीवन यापन करने वाले लोगों को योजनाओं के लाभ से वंचित होने का काला सच भी उजागर किया है। साथ ही सरकार को आईना दिखाने का काम किया है कि उसके द्वारा संचालित जन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ पात्रों तक अब भी नहीं पहुंच रहा।
चाहे वह आवास का मामला हो, शौचालय का मामला, जनधन योजना का मामला, राशन कार्ड एवं आयुष्मान भरत योजना हो। इतना ही नहीं इसनेे वंचितों के दर्द को भी उजागर किया है। काबिले गौर है कि यदि लल्लन के वास्तव में पात्र की श्रेणी में आता है और उसके पास प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना आयुष्मान भारत का कार्ड होता तो शायद उसके बेटे की जान बच सकती थी। तब इलाज के अभाव में लल्लन के बेटा दम नहीं तोड़ता। इस घटना से सीख लेकर सरकारी तंत्र अब पात्रों की तलाश करें और उन्हें सरकारी योजनाओं से जोड़ने के लिए पहल करें अन्यथा अनेकों लल्लन के बेटे, बहु, पत्नी और भाई-बहनों की जान यूं ही जाती रहेगी। सरकारी तंत्र की लापरवाही के चलते रिक्शा चालक लल्लन को सरकार तत्काल अहेतुक सहायता पहुंचा कर उसे लाभान्वित करें। साथ ही उसे गरीबों के लिए बनी योजनाओं से जोड़ने के आदेश दें। ताकि सरकार के प्रति आम लोगों की भावना सकारात्म हो सके।
रिपोर्ट मुशीर जैदी
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