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जल, जंगल, जमीन से बचेगा प्रकृति का अस्तित्व



 रामगढ़/बलिया।  मानव की भोगवादी प्रवृत्ति एवं विलासितापूर्ण जीवन की पूर्ति हेतु किए गए अनियोजित, अनियंत्रित तथा अंधाधुन्ध विकास के चलते प्राकृतिक संसाधनों का जिस बेरहमी से दोहन - शोषण किया जाता रहा है उसके चलते प्राकृतिक तत्वों का निरन्तर विनाश एवं क्षरण जारी है, फलस्वरूप जैविक विविधता सदैव के लिए समाप्त होती जा रही है. जीव- जंतुओं एवं वनस्पतियों की अनेक प्रजातियाँ सदैव के लिए समाप्त हो गयी हैं और यदि यही स्थिति बरकरार रही तो जो भी प्राकृतिक तत्व बचे हैं भविष्य में सदैव के लिए समाप्त हो जायेंगे.प्रकृति के इन तत्वों को सुरक्षित एवं संरक्षित रखना ही विश्व प्रकृति दिवस का मुख्य उद्देश्य है,जिसके बिना न केवल मर्तमान पीढ़ी, बल्कि भावी पीढ़ी का अस्तित्व भी खतरे में है.
        यदि प्राकृतिक तत्वों के विनाश की वस्तुस्थिति को देखा जाय तो विश्व स्वास्थ्य संगठन के रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान समय में 2.6 बिलियन लोगों को स्वच्छ जल पीने के लिए उपलब्ध नहीं है.प्रदूषित जल से प्रतिवर्ष 5 लाख लोग काल कवलित हो रहे हैं.आई० पी० बी० इ० एस० की रिपोर्ट के अनुसार अब लुप्तप्राय प्रजातियों की संख्या 40 प्रतिशत से अधिक हो गयी है.1556 प्रजातियाँ सदैव के लिए विलुप्त हो चुकी हैं.सम्पूर्ण जैवविविधता खतरे में पड़ गयी है. 10 लाख प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं.प्रत्येक चार में से एक प्रजाति विलुप्ति के कगार पर है। 6190 स्तनधारी प्रजातियों में से 559 सदैव के लिए विलुप्त है गयी हैं और 1000 प्रजातियों की विलुप्त होने की संभावना है.समुद्र में बढ़ते प्रदूषण से 267 समुद्री प्रजातियों के लिए संकट बरकरार है। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार कुछ दशकों में ही 10 लाख से अधिक प्रजातियाँ विलुप्त हो जायेंगी.
     आई० बी० पी० इ० एस०  के एक रिपोर्ट के अनुसार आगामी दशक के दौरान हमारी धरती पर विद्यमान अनुमानित 8 मिलियन जीवधारियों एवं पादपों की प्रजातियों में से लगभग एक मिलियन प्रजातियों के विलुप्त की संभावना है. पृथ्वी की 75 प्रतिशत भूमि एवं 66 प्रतिशत समुद्री पर्यावरण में विशेष रूप से बदलाव आ गया है।जलीय जैवविविधता को कायम रखने वाली आर्दभूमियों में से 85 प्रतिशत भूमि का क्षेत्र समाप्त हो गया है. 40 प्रतिशत उभयचर एवं 33 प्रतिशत जलीय स्तनधारी प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर है.मानव गतिविधियों के कारण 680 कशेरूकी प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं. कुल ज्ञात 5.5 मिलियन कीटों की प्रजातियों में से लगभग 10 प्रतिशत पर विलुप्ति का खतरा मँडरा यहा है. 3.5 प्रतिशत घरेलू प्रजाति के पक्षी विलुप्त हो चुके हैं. 50 प्रतिशत से अधिक कृषि क्षेत्रों का विस्तार हो चुका है. पूर्व औद्योगिक काल से लेकर वर्तमान समय तक 68 प्रतिशत वैश्विक वन विनष्ट किए जा चुके हैं. हो रहे जलवायु परिवर्तन से इस सदी के अंत तक मछली उत्पादन में 3 - 10 प्रतिशत तक की कमी आने की संमावना व्यक्त की गयी है। ग्लोबल वार्मिंग से समुद्री बायोमास में लगभग 3- 25 प्रतशित तक की कमी हो जाने की सम्भावना व्यक्त की गयी है। वर्तमान समय में विश्व के 40 प्रतिशत लोगों को स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं है। 

रिपोर्ट  रविन्द्र नाथ मिश्र

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