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चाइनीस झालरों की चकाचौंध में विलुप्त हुआ स्वदेशी दीपक




रसड़ा (बलिया)। सबका साथ, सबका विकास, ज़ी हां हम बात करते हैं डिजिटल इंडिया के दौर में कुम्हारों के धंधे पर लगा ग्रहण। जी हां हम बात करते हैं चाइनीज दीयों और झालरों की जगमगाहट ने लोगों को गांवों की सोंधी मिट्टी के खुशबू से बने दीयों से कोसों दूर कर दिया है। दूसरों का घर रौशन करने वाले कुम्हारों के घरों में आज खुद अंधेरा नजर आ रहा है।कुम्हार मिट्टी के दिये बना दीपावली में बेंच अपना और अपने परिवार का पालन पोषण करते थे लेकिन चाइनीज दीयों के बाजार में आने से इनका धन्धा चौपट हो गया है। कुम्हार बेरोजगारी की कगार पर आ खड़े हुए। इलेक्ट्रॉनिक दीयों ने बाजार को चकाचौंध कर दिया है। वही बाजार में आये लोगों के दिलों से गांव की मिट्टी के दीयों की अहमियत को खत्म कर दिया है।अभी दीपावली दो  दिनों बाद है लेकिन बलिया रसड़ा नगरा , बेल्थरा रोड, सिकंदरपुर , बांसडीह सहतवार मनियर बैरिया आदि बाजार सहित आसपास के चट्टी चौराहो पर स्थित दुकाने चाइनीज इलेक्ट्रॉनिक बत्तियों एवं अन्य सामानों से पट गई है।
डिजिटल इंडिया के इस चकाचौंध ने लोगों के मन में मिट्टी के दीयों की जगह चाइनीज दीयों और झालरों ने ले लिया है। सोशल मीडिया फेसबुक ट्वीटर में भले ही चाइनीज सामानों को विरोध जताया जा रहा है जनपद सहित तहसील क्षेत्र के समाजसेवी, राजनीतिक दल व अन्य सामाजिक संगठनों के लोग चाइनीज उत्पादों के बहिष्कार की बात कर रहे है। मगर सच्चाई इससे विपरीत है। दीपावली को लेकर चाइनीज झालरों, बत्तियों से इलेक्ट्रॉनिक्स दुकानें भरी पड़ी है।लोग मिट्टी के दीयों की अपेक्षा इलेक्ट्रॉनिक चाइनीज दीयों और झालरों को ज्यादा पसंद कर रहे है। जहां इलेक्ट्रॉनिक चाइनीज दीयों की बिक्री कर रहे दुकानदारों के यहां ग्राहकों की कतार अभी से ही लगनी शुरू हो गई है।वहीं महीनों से मेहनत कर मिट्टी के दिये बनाकर बेंचने वाले कुम्हार ग्राहकों के इन्तजार में टकटकी लगाए बैठे है कि उनके दिए कब बिके और वो अपने परिवार के दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर सके। वही लोगों में इलेक्ट्रॉनिक चाइनीज दीयों की पसंद ने मिट्टी के दीयों की अहमियत को खत्म दिया है।जिससे मिट्टी के दिए बनाने वाले आज बेरोजगारी के कगार पर खड़े है और अब इनका मिट्टी के दियो का व्यवसाय समाप्ति के कगार पर पहुंच चुका
अखण्ड भारत न्यूज़ संवाददाता पिन्टू सिंह लोगों से अपील करते हैं कि इस दीपावली 
कुम्हारों का दर्द सांझा कर रहे हैं
 रसड़ा ब्लाक क्षेत्र के मंन्दा गांव कुम्हार  रामधियान प्रजापति ने बातचीत में बतलाया कि पहले दीपावली के एक पखवाड़े पहले से ही दीपकों की खरीद आरम्भ हो जाती थी।लोग दो दो सौ दीयों का ऑर्डर देते थे।अब तो अधिकतम 25 या 50 दीपकों का ही ऑर्डर मिलता है।हमलोग दीया आदि मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए दो माह पहले से ही परिश्रम करने लगते थे।कहते है कि मिट्टी के बर्तनों के व्यवसाय से परिवार के दो जून की रोटी की व्यवस्था आसानी से हो जाती थी।अब लोग मिट्टी के वर्तनो के जगह पर प्लास्टिक और चाइनीज वस्तुओं का उपयोग करना पसंद करते है।गौरी प्रजापति ने कहा कि बिजली के सजावटी बल्ब, मोमबत्ती और रेडीमेड दीपक बाजार में आ जाने से उनका कारोबार चौपट हो गया है। लोगों की माने तो अब केवल खानापूर्ति के लिए ही मिट्टी के दीपकों का उपयोग कर रहे है। इस खबर के माध्यम से सभी देशवासियों से अपील है कि इस दीपावली गांव के सोंधी मिट्टी से कुम्हारों के घर से बने दीए जलाकर चाइनीज वस्तुओं को नज़र अंदाज़ करें ।


रिपोर्ट- पिन्टू सिंह 

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