बदलता समाज :जब दिल में नफरत नहीं प्यार हुआ करता था
जब साथ सब हुआ करते थे,हर लम्हा साथ जिया करते थे।
जब दिल में नफरत नहीं प्यार हुआ करते थे ,
तब सिर्फ साथ रहने की ही ख्वाहिश सब किया करते थे।
जब होली और ईद में दुश्मन भी दोस्त बन जाया करते थे ,
तब मिल बाट कर सब जिया करते थे।
जब माँ-बाप से रुठ कर भी हम मान जाया करते थे,
तब उनके प्यार की कीमत हम समझ जाया करते थे।
काश मोड़ सकती इस समय को फिर उसी ही दौर में,
जहाँ प्यार को बेचा न जाता था खुले बाजार में।
काश मोड़ सकती इस समय को फिर उसी ही दौर में,
जहाँ माँ-बाप न भेजे जाते थे कभी ओल्ड एज होम में।
काश मोड़ सकती इस समय को फिर उसी ही दौर में ,
जहाँ बंटवारे नही होते थे कभी एक ही घर मे।
ये इंसानों का खेल देखो क्या नए-नए करतब दिखलाता है,
सुंदर सी इस धरती का और क्या हष्र बनाता है।
लेखिका
-कामना पांडेय
फ़ीनिक्स इंटरनेशनल स्कूल, अगरसंडा में कक्षा 12 की छात्रा है।
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