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जाने सत्तू का बलिया जिले पर क़र्ज़ की कहानी


रसड़ा (बलिया)  बागी बलिया जिले को 19 अगस्त 1942 को आजाद करा लिया गया था और बलिया के महान सपूत पंडित चित्तू पाण्डेय कि अगुवाई में क्रांतिकारियों ने स्वतंत्र बलिया प्रजातंत्र सरकार की स्थापना की थी। लेकिन ये उस वक्त जितना आसान लग 
रहा है उतना आसान था नहीं 
। क्यू की ज़ब सारा देश गुलाम हो और केवल एक जिला प्रजातंत्र और स्वाधीन हो तो बाहरी सहायता अन्य जिलों से कदापि नहीं मिल सकती थी । ऐसे में
अंग्रेज़ हुकूमत भी यही चाहते थे की बलिया वाले ज़ब भूखो मरने लगे एवं अपने घुटनो पे आ जाए तो स्वाधीनता की औकात पुरे देश को दिखा सके अंग्रेजी हुकूमत ये सिद्ध करना चाहती थी की बगैर अंग्रेजी फरमानो के भारत का कोई हिस्सा रह नहीं सकता!
बलिया जिले कोअन्य जिलों से सारी मदद बंद करवा दी गयी! उन्होंने सोचा ज़ब अनाज बाहरी राशन खत्म हो जाएगा तो खुद बा खुद ये लोग घुटने टेक देंगे| लेकिन बलिया के क्रन्तिकारी  वीरो ने घुटने नहीं टेके और समग्र जिला एकजुट हो उठा तब गंगा किनारे लोग ऐसे ही चना छींट दिए और गंगा मैया की कृपा हुई की इतना अनाज हुआ की और अनाज की जरुरत नहीं पड़ी! पूरी किसानी गंगा मैया ने संभाल लिया और इतना चना और जव  होने लगा की लोगो के सत्तू खाना शुरू कर दिया । पुरे 5 साल बिना बाहरी मदद के सत्तू खा के बलिया ने अपनी स्वाधीनता सिद्ध की।
ये दास्तां  वर्षों पहले स्वर्गीय कलिका मिश्रा के मुख से सुन हमलोग बचपन मे गोरवान्तिक महसूस करते थे।
एक क़र्ज़ जो इस सत्तू ने पुरे भारत वर्ष की एकता के लिए जो चढ़ाया वो शायद ही कोई अन्य खाग्य सामग्री का होगा।
इस कॅरोना काल मे इसी एकजुटता एवं साहस की जरुरत बलिया जनपद को है ।                  



रिपोर्ट : पिन्टू सिंह

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