खरी-खरी: जब कम था खतरा तो सतर्क थे हम अब हालात हुए भयावह तो बेपरवाह हुए हम
हम लोग कोविड-19 के सबसे खतरनाक दौर में पहुंच गए हैं। लेकिन सबसे ज्यादा आश्चर्य और दुख की बात यह है कि लोग इसको गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। जिस समय सरकार के द्वारा लॉक डाउन किया गया था उस समय इंफेक्शन का खतरा बहुत कम था क्योंकि केसेस बहुत कम थे।
उसके बाद भी हम दुकान के दोगज दुरी हेतु गोलाई बनाकर उसमे ग्राहकों को खड़ा कराते थे क्या इसलिए कि जिला प्रशासन का पहरा था भाईयो अब क्योंकि केसेस बहुत बढ़ गए हैं इसलिए इंफेक्शन का खतरा बहुत अधिक बढ़ गया है। हम स्टेज 3 में प्रवेश कर चुके हैं या करने वाले हैं, लेकिन जनता का रिस्पांस इससे उल्टा ही है। लोग बिना किसी जरूरी काम के घर से खूब निकल रहे हैं, मास्क बहुत कम लोग लगा रहे हैं और दूरी का पालन भी नहीं कर रहे हैं।
प्रशासन की तरफ से भी अब कोई सख्ती दिखाई नहीं पड़ रही है, केवल थोड़े से चालान काट कर औपचारिकता निभाई जा रही है। स्वयंसेवी संस्थाएं और एन जी ओ शांत हो गए हैं।
प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी लोगों को जागरूक करने की जिम्मेदारी बिल्कुल नहीं निभा रहे हैं अब वे भी समाचार देने तक ही सहयोग दे रहे हैं।
सोशल मीडिया पर भी हमारा सारा ध्यान चाइनीस सामान के बहिष्कार, बाबा रामदेव की दवा के ऊपर बहस,कानपुर के पुलिस व विकास के मामले पर ही केंद्रित हो गया है और हम कोरोना के बचाव से संबंधित बुनियादी सिद्धांतों को ही भूल गए हैं। यह इस प्रकार है कि जब दुश्मन के आने का अंदेशा था तो हम सब बंदूके लिए तैनात थे और अब जब दुश्मन सर पर आ गया है तो हम बंदूकें कोने में रख कर लापरवाही से इधर उधर टहल रहे हैं। यह बहुत दुखद स्थिति है और हमें इसके बहुत भयावह परिणाम झेलने पड़ेंगे।दवा का व्यापार एक आवश्यक/अति आवश्यक सेवा मे आता है।इसलिए हमे कोरोना से (बच/बचाके)बचाव के उपाय के संग कोरोना आपदा मे चलते रहना होगा।
आनन्द कुमार सिंह
(अध्यक्ष,बी. सी. डी. ए. बलिया )
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