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शुक्रवार से आरम्भ होगा अधिक मास, भगवान विष्णु का पूजन अर्चन लाभप्रद



नगरा, बलिया। भगवान विष्णु के पूजन अर्चन के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाने वाला पुरुषोत्तम मास 18 सितम्बर, शुक्रवार से आरम्भ हो रहा है तथा 16 अक्टूबर तक रहेगा।17 अक्टूबर से शारदीय नवरात्र आरम्भ होगा।मान्यता है कि अधिक मास में भगवान विष्णु की आराधना का फल दस गुना अधिक मिलता है। सनातन पंचांग के अनुसार हर तीन साल में एक अतिरिक्त महीना जुड़ जाता है, जिसे अधिक मास, मलमास या पुरुषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है।
                  हर साल पितृपक्ष समाप्त होने के अगले दिन शारदीय नवरात्रि का आरंभ हो जाता है लेकिन इस वर्ष ऐसा नहीं हैं। इस वर्ष पितृपक्ष और शारदीय नवरात्र के बीच एक अतिरिक्त माह जुड़ गया है।बता दें कि हिंदू पंचांग के मुताबिक हर 3 साल में चंद्रमा और सूर्य के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए अधिक मास आता है। इस मास को मलमास और पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। विद्वानों के मुताबिक सूर्य वर्ष 365 दिन 6 घंटे का होता है जबकि चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों में लगभग ग्यारह दिन का अंतर होता है। हर साल घटने वाले इन 11 दिनों को जोड़ा जाए तो ये एक माह के बराबर होता है। इसी अंतर को समाप्त करने के लिए हर तीन वर्ष पर एक चंद्र मास अस्तित्व में आता है, जिसे अधिक मास के नाम से जाना जाता है।
*भगवान विष्णु ने अपनाया, इसीलिए नाम पड़ा पुरुषोत्तम मास*
           दरअसल यह मास भगवान विष्णु की आराधना के लिए अत्यंत लाभकारी माना गया है। मान्यता है कि अधिक मास में भगवान विष्णु की आराधना का फल दस गुना अधिक मिलता है। कहते हैं कि जब सभी महीनों को देवताओं में बांटा जा रहा था। तब सभी देवी-देवताओं ने अधिक मास को अपनाने से मना कर दिया। उनका तर्क था कि इस दौरान कोई भी मांगलिक कार्य नहीं होता है इसलिए वह इस मास को नहीं अपनाना चाहते हैं। सभी देवी-देवता भगवान विष्णु से विनती करने लगे कि वह इस मास को अपनाएं। भगवान विष्णु ने बात मान कर अधिक मास को अपनाया और इसे अपना ही एक नाम पुरुषोत्तम दिया।

*पुराणों में भी है अधिक मास का महत्व*

         अधिक मास के महत्व के तौर पर अनेक पौराणिक कथा भी सुनाई जाती है। कहते हैं कि प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नामक दैत्य था। वे स्वयं को अमर करना चाहता था। भगवान विष्णु को वह अपना शत्रु मानता था। उसने ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान पाने के लिए तपस्या की। ब्रह्मा जी उसकी तपस्या से प्रकट हुए और उनसे अमरता के अलावा कोई और वरदान मांगने को कहा। हिरण्यकश्यप ने चतुरता दिखाते हुए कहा कि मेरी मृत्यु 12 महीनों में नहीं होनी चाहिए जिस पर ब्रह्मा जी ने तथास्तु कहा।हिरण्यकश्यप ब्रह्मा जी का यह वरदान सुनकर प्रसन्न हो गया कि अब वह अमर है। अमरता के वरदान की वजह से वह धरती पर कब्जा करने के लिए लगातार पाप कर्म करने लगा। भगवान विष्णु ने उसके बढ़ते पापों को देखकर उसका वध करने के लिए तेरहवां महीना यानी अधिक मास बनाया। इसी माह में भगवान विष्णु ने भक्तराज प्रहलाद के पिता दैत्य हिरण्यकश्यप का वध कर दिया।
                                


रिपोर्ट : संतोष द्विवेदी

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