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ऐसे कर्तव्यनिष्ठ डॉक्टर को "डॉक्टर्स डे" पर जनपद वासियों को सलाम


हल्दी, बलिया। हर साल एक जुलाई को राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस मनाया जाता है। जिंदगी में डॉक्टर का कितना महत्व है, हम यह अच्छी तरह से जानते हैं। डॉक्टर इंसान के रूप में भगवान के समान होता है जो इंसान को उसके मर्ज से उबारता है। डॉक्टर को हिंदी में चिकित्सक, वैद्य आदि नामों से जाना जाता हैं। भारत में प्राचीन काल से ही वैद्य परंपरा रही है, जिनमें धनवन्तरि, चरक, सुश्रुत, जीवक आदि रहे है। धनवन्तरि को तो भगवान के रूप में पूजन भी किया जाता है। जो व्यक्ति समाज के लिए इतना महत्वपूर्ण कार्य करता है, उसके लिए भी एक दिन होना चाहिए और वही खास दिन है 'डॉक्टर्स डे'। 

ऐसे ही खास दिन पर जनपद के चिकित्सक डॉक्टर मुकर्रम अहमद जिसने कोविड-19 महामारी के प्रथम फेज में इस दौरान मरीजों के कई सकारात्मक संदेशों के वीडियो भी वायरल हुए। वही सेकंड फेज में भी अपने  खुद कोविड-19 पॉजिटिव होने के बाद भी अपनी पूरी जिम्मेदारी निभाई। जी हां हम बात कर रहे हैं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सोनवानी  के चिकित्सा अधिकारी डॉ मुकर्रम अहमद की जिन्होंने खुद की और अपने परिवार की परवाह किए बगैर कोविड-19 उपचाराधीनों की सेवा इस कदर जुटे रहे कि आज भी इनकी सेवा से स्वस्थ होकर वापस गए व्यक्ति भी आज इन इनका फोन कर हाल चाल लेते रहते हैं।

डॉ मुकर्रम बताते हैं कि इस पेशे के लिए उनकी पहली नियुक्ति 10 अक्टूबर 2014 में गंगापुर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बलिया पर हुई थी। उसके बाद उनकी परीक्षा की घड़ी उस वक्त आई जब पहली बार कोविड-19 महामारी का असर जनपद में हुआ इस दौरान 26 मई को वह खुद कोविड-19 पॉजिटिव हो गए, जिसके बाद होम आइसोलेशन में चले गए। लेकिन परिवार के लोगों ने धैर्य से काम लिया । 12 जून को उनकी रिपोर्ट निगेटिव आई और परिवार की जिम्मेदारियों को निभाते हुए कोविड-19   की जिम्मेदारी भी उसी दिन संभाली। उन्होंने बताया कि निगेटिव होने के बाद  परिवार में खुशी का माहौल आया 

उन्होंने बताया कि हॉस्पिटल में ड्यूटी के दौरान विभागीय अधिकारियों और साथ काम कर रहे कर्मचारियों का विशेष योगदान मिला, जिसकी वजह से वहां होम आइसोलेशन मरीज स्वस्थ होकर अपने घर से वह आज भी फोन कर हमारा और हमारे परिवार का हाल चाल लेते रहते हैं।

अपने इसी कार्यों के बदौलत डॉ मुकर्रम बताते हैं कि उन्हें एमबीबीएस करने के बाद पीजी करने की इच्छा थी। लेकिन काम की वजह से उन्हें टाइम नहीं मिल पाता है फिर भी आगे कोशिश जारी रहेगा।

डॉ मुकर्रम के साथ काम करने वाले सहयोगी बताते हैं कि हॉस्पिटल में ड्यूटी के दौरान कई बार विभागीय बजट देर से आने के कारण मरीजों को सुविधा देने में दिक्कत आई। तब उन्होंने बजट की परवाह किए बगैर स्वयं की तनख्वा से मरीजों के लिए उनकी मौलिक सुविधा का सामान की खरीदारी कर उन्हें किसी भी प्रकार की कमी नहीं होने दी । शायद यही कारण है कि उनके देखे हुये मरीज उन्हें आज भी तहे दिल से याद करते हैं और धन्यवाद देते हैं।


क्यों मनाते हैं डॉक्टर्स डे -- हर साल एक जुलाई को प्रख्यात फिजीशियन डॉ बिधान चन्द्र रॉय के जन्मदिवस के अवसर पर राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस मनाया जाता है । उनका जन्म एक जुलाई 1882 में हुआ था और इसी दिन सन 1962 में देहांत हुआ । अपने 80 साल के जीवन में आधा जीवन चिकित्सा के क्षेत्र में समर्पित किया । एक फरवरी 1961 को उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी नवाज़ा गया । यह दिन उन्ही के याद में और डॉक्टर को धन्यवाद देने के लिए मनाया जाता है ।


रिपोर्ट एस के द्विवेदी

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