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बांसडीह में महसूस की जा रही सियासी तपिश की ऑच


 



मनियर, बलिया। उतर प्रदेश का चुनावी माहौल जुबानी गर्माहट के साथ अपने शबाब पर है। लोग 10 मार्च को आने वाले परिणाम की ओर टकटकी लगाए हुए है तो दूसरी ओर प्रदेश की वीआईपी सीटों में शुमार विधानसभा बाँसडीह को लेकर भी सियासी गलियारों में अटकलों का बाजार गर्म है। इसका कारण ये भी है कि शेर-ए-पूर्वांचल के नाम से जाने जाने वाले बच्चा पाठक के साथ कभी इस सीट की पहचान जुड़ी हुई थी। मगर बात वर्तमान कि करें तो ये सीट सपा के खाते में है और इसी सीट से नेता प्रतिपक्ष की आवाज सदन में गूँजती है। यहीं कारण है कि प्रदेश के सियासी गलियारों में बदलते तापमान का असर इस विधानसभा में भी साफ दिखता है। लेकिन इस यक्ष प्रश्न यह है कि क्या नेता प्रतिपक्ष इस बार भी अपनी सीट बचा पाते है या किसी और दल का झंडा यहां बुलंद होगा। चर्चा है कि पिछली बार की निर्दलीय प्रत्याशी रही केतकी सिंह जो कि इस बार भाजपा व निषाद पार्टी की संयुक्त प्रत्याशी के रूप में चुनावी अखाड़े में है। केतकी ने वर्ष 2017 के चुनाव में खूब लड़ी मर्दानी के रुप में लगभग 49, 276 से अधिक मत प्राप्त करते हुए राजनैतिक पंडितों को चौंका भी चुकी हैं। हाँलाकि वर्ष 2017 के चुनाव में रामगोविन्द चौधरी 51201 मत प्राप्त करते हुए पहले स्थान पर रहे थे। वहीं भाजपा व सुभासपा के संयुक्त प्रत्याशी अरविन्द राजभर को 40234 व पूर्व विधायक रहे बसपा प्रत्याशी शिवशंकर चौहान को 38745 मत हासिल हुए थे।


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आपातकाल के दौर में भी कांग्रेस का रहा था कब्जा


विधानसभा बांसडीह की बात करें तो 1951 में कांग्रेस पार्टी से शिवमंगल यहाँ पहले विधायक चुने गए। सन् 1957 में कांग्रेस से ही राम लछन, 1962 में कांग्रेस से शिवमंगल, 1967 में बीजेएस से बैद्यनाथ, 1969 में बच्चा पाठक, 1985 में जनप से विजयलक्ष्मी 1989 के चुनाव में भी जनता दल से इस सीट पर विधायक रही। 1991 व 96 में बच्चा पाठक, 2002 में रामगोविन्द चौधरी, 2007 में बसपा से शिवशंकर चौहान, 2012 व 2017 में रामगोविन्द चौधरी सपा से विधायक चुने गए। बांसडीह विधानसभा सीट की राजनीतिक पृष्ठभूमि की बात करें तो ये सीट कांग्रेस का गढ़ रही है। इस विधानसभा सीट से कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे बच्चा पाठक सात बार विधायक रहे। पूर्व मंत्री रह चुके बच्चा पाठक की दमदारी की बात करें तो आपातकाल विरोधी लहर में भी उन्होंने ये सीट कांग्रेस की झोली में डाली थी।


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13 दावेदार आजमा रहे किस्मत


इस बार कुल 13 प्रत्याशी चुनावी मैदान में आमने-सामने है, जिनमें रामगोविंद चौधरी, केतकी सिंह, पुनीत पाठक, मांती राजभर, लक्ष्मण, सुशांत, अजय शंकर, दयाशंकर वर्मा, ममता, संग्राम तोमर, प्रमोद पासवान, विनोद कुमार, स्वामीनाथ साहनी शामिल है। ऑकड़ों पर गौर फरमाए तो इस विधानसभा में मतदाताओं की कुल संख्या लगभग 3लाख 85 हजार है। इनमें यादव मतदाताओं की संख्या लगभग 40 हजार, राजभर 35 हजार, ब्राह्मण 58 हजार, क्षत्रिय 60 हजार, चौहान 34000, अनुसूचित जाति 32 हजार, वैश्य 24हजार, कोइरी 25हजार, बिन्द/मल्लाह 24 हजार, मुस्लिम 10 हजार, अनुसूचित जनजाति 9 हजार के आसपास है।


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अब तक भाजपा नहीं खोल पाई खाता


इतिहास पर नजर डाले तो आजादी के बाद से हुए अबतक के चुनावों में भाजपा यहां अपना खाता नहीं खोल पाई है। ऐसे में ये देखना भी दिलचस्प होगा कि पार्टी यहां इतिहास रच पाती है या नहीं। पार्टी के परम्परागत माने जाने वाले वोटों की तुलना करें तो रामगोविंद चौधरी सुभासपा से गठबंधन के बाद मजबूत स्थिति में ही दिखाई दे रहे हैं मगर राजनैतिक समीक्षकों की मानें तो इसमें ये भी देखना महत्वपूर्ण होगा कि गठबंधन के बाद राजभरों का कितना प्रतिशत वोट सपा को मिलता है? उनकी मानें तो बसपा प्रत्याशी मांती राजभर के चुनावी अखाड़े में उतरने के बाद राजभरों को एक और विकल्प मिल सकता है। केतकी पार्टी के परम्परागत वोटों के साथ निषाद पार्टी के जाति वोटरों पर दावा ठोंकती नजर आ रही है। वहीं पुनीत पाठक व अजय शंकर की मौजूदगी लड़ाई को दिलचस्प बना रही है।


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बिना चुनाव लड़े चर्चा में शिवशंकर


इस चुनावी समर में एक नाम जिसकी बिना उम्मीदवारी सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है वो है पूर्व विधायक शिवशंकर चौहान। बसपा से पूर्व विधायक रह चुके शिवशंकर चौहान एक बार रामगोविन्द चौधरी को चुनावी दंगल में पटखनी दे चुके हैं। वर्ष 2017 के चुनाव में बतौर बसपा प्रत्याशी उन्होंने लगभग 38 हजार मत भी हासिल किया था। फिलहाल वो भाजपा में है और उनकी उपस्थिति केतकी की दावेदारी को मजबूत बनाती बताई जा रही है।


रिपोर्ट - राम मिलन तिवारी

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