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श्रीमद् भागवत महापुराण की कथा श्रवण करने से हमारे हृदय में होता है भगवान का निवास:- लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी





दुबहर । शास्त्र ,नीति और मर्यादा को छोड़कर हम अन्याय ,अनीति और छल कपट से जितना भी धन कमा लें ,पद प्रतिष्ठा प्राप्त कर लें उससे शुभ और कल्याण नहीं हो सकता । परमगति की तो बात ही बहुत दूर है । इसलिए मानव को सदाचार , परोपकार के साथ कर्तव्य परायण होकर सदाचार पूर्वक जीवन यापन करना चाहिए । उक्त बातें मंगलवार के दिन क्षेत्र के गंगा नदी पर बने जनेश्वर मिश्रा सेतु के एप्रोच मार्ग के निकट चातुर्मास व्रत कर रहे संत लक्ष्मी प्रपन्न जियर स्वामी ने श्रीमद् भागवत महापुराण की कथा में एक प्रसंग के दौरान कहीं । कहा कि  नैमिषारण्य की धरती पर आज से 6 हजार वर्ष पहले सूत जी महाराज ने 88 हजार ऋषियों को श्रीमद् भागवत महापुराण की कथा सुनाई तभी से इस कथा को सुनने सुनाने का प्रचलन दुनिया मे प्रारंभ हुआ । शास्त्रों में पृथ्वी पर आठ बैकुंठधाम बताए गए हैं । जिसमें चार उत्तर भारत में और चार दक्षिण भारत में हैं उनमें से एक नैमिषारण्य भी बैकुंठ धाम की श्रेणी में आता है । कहा कि दुनिया में कोई व्यक्ति जब अच्छा काम शुरू करता है तो उसमें विघ्न बाधा जरूर आती है, जिससे घबराने की जरूरत नहीं यदि आप शुभ संकल्प के साथ कार्य का आरंभ करेंगे तो लाख विघ्न बाधाओं के बाद भी आपका कार्य संपन्न होगा । बिना मुहूर्त के भी अच्छा कार्य किया जा सकता है इससे कोई नुकसान नहीं होता मुहूर्त में करने से फल अधिक मिलता है लेकिन बिना मुहूर्त के भी शुभ कार्य करने में कोई नुकसान नहीं है । जिस समय मन बुद्धि दिमाग अच्छा कार्य करने के लिए प्रेरित कर दें वही समय अच्छा है । कथा में स्वामी जी महाराज ने अर्जुन सुभद्रा विवाह का विस्तार से वर्णन सुनाया कहा कि जहां कहीं भी मंदिर में घर में मूर्ति की स्थापना की गई है वहां पर देवी देवताओं को दिन में तीन बार भोग अवश्य लगाना चाहिए नहीं तो कम से कम 24 घंटे में एक बार तो अवश्य ही भोग लगाना चाहिए । ऐसा नहीं होने से पुनः मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा करानी पड़ती है । कहा कि सनातनी को अपने मस्तक पर तिलक अवश्य लगाना चाहिए।ब्रह्म जीव माया का सूचक तिलक का सम्बंध भगवान से है । कहा कि घर में परिवार में अगर पुत्र पैदा नहीं हो रहा है तो इससे पितर नाराज हैं ,घर परिवार में धन वैभव की कमी है तो भगवान नाराज हैं , लोगों में बुद्धि और ज्ञान की कमी है तो ऋषि मुनि गुरु नाराज होते हैं । इसलिए गुरु ऋषि-मुनियों की सेवा के साथ ही अपने घर में हवन इत्यादि पूजा पाठ के साथ अपने सामर्थ्य के अनुसार कुछ लोगों को भोजन अवश्य कराना चाहिए । इससे नाराज रहने वाले  ईश्वर, पितर और गुरु आदि प्रसन्न होते हैं । उन्होंने कहा कि श्रीमद् भागवत कथा श्रवण करने से  हमारे  हृदय में भगवान का निवास हो जाता है। 

 इस चातुर्मास यज्ञ में बलिया के अलावा भारी संख्या में बिहार के भक्तों की उपस्थिति भी देखी जा रही है ।

रिपोर्ट:-नितेश पाठक

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