स्त्रीत्व-बनाम-पुरुषत्व💐
क्या सोचते हो ,
तुम बात नही करोगे तो,
यह शाम नही ढलेगी,
अगर हंस के गले नही लगाओगे तो,
यह रात ना कटेगी।
गलत..बहुत गलत सोचते हो तुम।
वक्त का काम चलना है ,तो चलेगा ही..
शाम भी ढ़लेगी और रात भी।
सुबह खुशनुमा बयार भी चलेगी,
मगर हां,मेरे लिये वक्त
ठहरा-ठहरा सा होगा।
शाम मुद्दतो मे और
रात सदियो सी कटेगी,
सुबह की ताजी हवा भी
तुम बिन भली कैसे लगेगी।
पर अब मै न तुमको मनाऊंगी,
तुम पुरूषत्व के अहं मे डूब,
हर बार मुझे ही दोषी ठहराते हो।
प्रेम तो साझा होता है,
तो गलतियो की जवाबदेही
साझा क्यो नही।
नही चाहती तुमको अपने
समक्ष झुकाना,
पर झूठे अहं के आगे नतमस्तक,
मै कब तक और क्यो होती रहूं।
इसलिये मै स्त्री हूं कमजोर हूं,
भावुक हूं।
तुमसे अशीम प्रेम करती हूं।
नही ऐसा करना अपमान होगा।
स्त्रीत्व का,प्रेम का।
और शायद तुम्हारे पुरूषत्व का🙏
(रंजना पांडेय शिक्षिका प्रभारी प्रधानाध्यापक बागी बलिया)💐💐
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