चित्त की चंचलता को रोकना ही योग:- लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी
दुबहर:- शुकदेवजी महाराज से राजा परीक्षित ने पुछा की भटके हुए मन को कैसे नियंत्रित किया जाए। तो सुकदेव जी महाराज ने कहा कि इसके लिए योग करना पडेगा। तो फिर राजा परीक्षित ने प्रश्न किया कि योग किसे कहते हैं और योग कितने प्रकार के होते है। सुकदेव जी महाराज ने कहा कि योग केवल इतना ही नही की सांस को लेना फिर छोड़ना। यह केवल स्वास्थ्य लाभ के लिए अच्छा है। योग का अर्थ है कि हमारा मन, चित् बुद्धि कहीं भटक गया है, कहीं अटक गया है, उसको चारो तरफ से केन्द्रित करके, एक जगह ला करके बांध लेना इसी का नाम है योग।
उक्त बातें भारत के महान मनीषी संत त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के कृपा पात्र शिष्य श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने जनेश्वर मिश्रा सेतु एप्रोच मार्ग के निकट हो रहे चातुर्मास व्रत में अपने प्रवचन के दौरान कही।
स्वामी जी महाराज ने बताया कि चित् की चंचलता को योग के द्वारा रोका जा सकता है। मनुष्य को अपने मन को भगवान में लगाना चाहिए। उन्ही में अपनी चित् की चंचलता को लगा दीजिए। जब जब मन करता है कुछ गुनगुनाने की तो मुरली वाले की नाम को गाइए। घुमने की इच्छा हो तो क्लब में मत जाइए। बल्कि विन्ध्याचल, अयोध्या, मथुरा, काशी चले जाइए। ऐसा करने से एक न एक दिन जो गलत प्रक्रियाओं में लग गया है वह मुड़ जाएगा और मुड़कर हमेशा-हमेशा के लिए उससे अलग हो जाएगा।
रिपोर्ट:- नितेश पाठक
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