शहीद मंगल पांडे के पौत्र बरमेश्वर का भी रहा स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान....
दुबहर,बलिया। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी रोशन करने का श्रेय बलिया के मंगल पांडे को है। 1857 में उनके द्वारा लगाई गई चिंगारी 1942 में शोला बनकर धधक उठी, जिसका परिणाम रहा कि अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना पड़ा। और हमारा देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ। सच कहे तो भारत छोड़ो आंदोलन 1857 क्रांति की उपज है। सोए भारत को जगाने वाले मंगल पांडे को 8 अप्रैल 1857 को फांसी दे दी गई। फांसी देने के बाद उनके परिजनों में भी उनका रक्त संचार होता रहा।
30 जनवरी 1831 को नगवा, बलिया में जन्मे मंगल पांडे के पौत्र बरमेश्वर पांडे ने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई। सक्रिय योगदान के कारण बलिया के सेनानियों ने बरमेश्वर को अपना कप्तान चुन लिया और आजीवन कप्तान साहब कहे जाते रहे। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में 1930 से 1942 तक लगातार सक्रिय रूप से भाग लिया। वे दर्जनों बार जेल गए और अनेक यातनाएं सही। अंग्रेजों ने उन्हें 10 जनवरी 1932 को गिरफ्तार कर गाजीपुर जेल में बंद कर दिया। 6 माह की सजा भुगतने व ₹50 अर्थदंड देने के बाद रिहा किए गए और फिर उन्होंने सेनानियों को संगठित किया। कई जगह रेल पटरियां उखाड़ी और डाकघरों में आग लगा दी गई। इस बार भी सहयोगीयों के साथ गिरफ्तार कर 19 नवंबर 1932 को गाजीपुर जेल में डाल दिया गया। उन्हें क्रिमिनल- एमेंडमेंट एक्ट 2908 के तहत पुनः छह माह की सजा तथा ₹50 का अर्थदंड दिया गया। दो बार के गिरफ्तारी के बाद वे ज्यादेतर भूमिगत रहकर आंदोलन को हवा देने का काम करते रहे। लेकिन फिर 7 फरवरी 1941 में डीआईआर के तहत गिरफ्तार कर लिए गए। 9 माह नजरबंद रहे और अवधि पूरी होने व ₹50 अर्थदंड के बाद रिहा किए गए। 1942 की महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया।
आजीवन प्रधान रहे कप्तान बरमेश्वर पांडे
मंगल पांडे विचार सेवा समिति के प्रवक्ता बब्बन विद्यार्थी ने बताया कि स्वतंत्र भारत में पंचायतों के चुनाव में बरमेश्वर पांडे को नगवा गांव का प्रधान चुना गया। बाद में नगवा गांव सभा से बंधुचक ग्राम पंचायत अलग होने पर उन्हें बंधुचक का भी निर्विरोध प्रधान चुना गया और वे आजीवन प्रधान रहे। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने उन्हें ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया था। उनका निधन 9 मार्च 1982 ई० को हो गया।
रिपोर्ट:- नितेश पाठक
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