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कार्य सिद्धि के लिए पवित्र लक्ष्य का होना नितांत आवश्यक : जीयर स्वामी




दुबहर:- पवित्र लक्ष्य से ही उत्तम कार्य की सिद्धि होती है। व्यक्ति के अनीति एवं अत्याचार से अर्जित धन का उपभोग तो परिजन करते हैं लेकिन के पाप के भागी नहीं बनते। जो लोग दिन-रात गलत तरीके से धनोपार्जन कर अपने परिजनों को सुविधाएं प्रदान करते हैं, वे भूल जाते हैं कि परिजन उनके कुकृत्य में साथ नहीं देते। व्यावहारिक रुप में भी देखा जाता है कि कुकृत्य से धन अर्जित करने वाला ही दंड का भागी बनता है न कि उसके परिजन। उक्त बातें भारत के महान मनीषी  संत त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के कृपा पात्र शिष्य लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने जनेश्वर मिश्रा सेतु एप्रोच मार्ग के निकट हो रहे चातुर्मास व्रत में अपने प्रवचन के दौरान कही। उन्होंने भागवत महापुराण कथा के  तहत बाल्मीकि जी के कृत्यों की चर्चा करते हुए कहा कि बाल्मीकि जी वरुण देव के पुत्र और कश्यप ऋषि के पौत्र थे। इनकी संगत एवं सहवास बिगड़ गया था, जिसके कारण ये अनीति और अत्याचार की पराकाष्ठा पर पहुंच गए थे। एक दिन वे सप्त ऋषियों को लूटने लगे। सप्त ऋषियों ने कहा कि हम लोग यहीं पर खड़े है। आप अपने परिजनों से पूछ लीजिए कि, जो परिजन आप के लूटे हुए धन का उपभोग करते हैं, वे आपके कुकृत्य के फल (पाप) में भागी होगे या नहीं? परिजनों ने जब पाप का भागी बनने से इनकार किया तो बाल्मीकि जी की आखें खुल गईं। व्यवहार में भी देखा जाता है कि जो व्यक्ति गलत तरीके से धनार्जन कर अपने परिजनों को सुख-सुविधाएं उपलब्ध कराता है, वह स्वयं की शक्ति और सुरक्षा के लिए तड़पता रहता है। वह जेल की यातनाएं तक भोगता है। उस वक्त परिजन और शुभचिंतक नसीहत देने लगते हैं कि ऐसे धन की क्या जरुरत है ? स्वामी जी ने कहा कि लक्ष्य सही नहीं हो तो मनुष्य द्वारा किए गए कर्मों के अनुरुप फल प्राप्त नहीं होता। कश्यप ऋषि की पत्नी दिति ने अपने दोनों पुत्रों हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यपु के मारे जाने के बाद देवताओं के समान प्रभावशाली पुत्र की कामना की, जो देवताओं का दमन कर सके।


रिपोर्ट : नितेश पाठक

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