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तीर्थ स्थल एवं संतों के यहां किए गए पाप का मार्जन संभव नहीं : जीयर स्वामी

 



दुबहर :- भक्ति सिर्फ गंगा स्नान और मंदिर में पूजा करना ही नहीं है, बल्कि ईश्वर का भजन करना, सत्कर्म करना, पुत्र, पति, स्वामी, समाज एवं मानवता की सेवा करना भी भक्ति है। श्री स्वामी जी ने कहा कि जीवन में शुभ अशुभ कार्यो का प्रतिफल अवश्य भोगना पड़ता है।

उक्त बातें भारत के महान मनीषी संत त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के कृपा पात्र शिष्य लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज

ने जनेश्वर मिश्रा सेतु एप्रोच मार्ग के निकट हो रहे चातुर्मास व्रत में अपने प्रवचन के दौरान कही। स्वामी जी ने कहा कि जाने अनजाने में अगर कोई पाप होता है ,तो संत के पास एवं तीर्थ में जाकर उसका मार्जन किया जा सकता है। लेकिन तीर्थ और संतो के यहाँ किये गये अपराध का मार्जन संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि भक्ति और भगवान के आश्रय में रहकर सुकर्म करते हुए अपने अपराधों के प्रभाव को कम किया जा सकता है, लेकिन पूरी तरह समाप्त नहीं किया जा सकता है। बारिश में छाता या बरसाती से आँधी में दिये को शीशा से बचाव किया जा सकता है, लेकिन बारिश एवं आँधी को रोका नहीं जा सकता है। भक्ति और सत्कर्म का प्रभाव यही होता है। प्रारब्ध या होनी का समूल नाश नहीं होता। प्रारब्ध का भोग भोगना ही पड़ता है। शास्त्रों में कहा गया है कि प्रारब्ध अवश्यमेव भोक्तव्यम्। ईश्वर की भक्ति अथवा संत-सद्गुरू प्रारब्ध की तीक्ष्णता को कम किया जा सकता है। यदि किसी व्यक्ति के भाग्य में  उसके पिछले जन्मों के कुकर्मो के कारण शूली पर चढ़ना लिखा है, तो इस जन्म के ईश्वर-भक्ति या गुरू की कृपा से प्रारब्ध की शूली शूल का रूप ले सकती है। प्रारब्ध को मिटाया नहीं जा सकता, उसके प्रभाव को कम किया जा सकता है।




रिपोर्ट:- नितेश पाठक

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