कामनायुक्त कर्मकांड से ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं :- जीयर स्वामी
दुबहर:- धर्म की जिज्ञासा के बाद ब्रह्म की जिज्ञासा करनी चाहिए। बिना धर्म को जाने ब्रह्म की खोज कठिन होती है। भूमि में छुपी खनिज-सम्पदा एवं दूध में मिले पानी को नंगी आँखों से नहीं देखा जा सकता, इसके लिए उपकरण की आवश्यकता होती है। उसी तरह ब्रह्म को जानने के लिये धर्म रुपी उपकरण आवश्यक है। कामनायुक्त कर्मकांड से ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं है।
उक्त बातें भारत के महान मनीषी संत त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के
कृपा पात्र शिष्य श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने जनेश्वर मिश्रा सेतु एप्रोच मार्ग के निकट हो रहे चातुर्मास व्रत में प्रवचन के दौरान कही।
स्वामी जी ने बतलाया की सदैव धन का उपयोग करना चाहिए उपभोग नहीं।
दैनिक जीवन में अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन का प्रयोग उपयोग है। लेकिन विलासिता के लिए धन का अनुचित अपव्यय धन का उपभोग है।
उन्होंने कहा कि आज की जीवनशैली उपभोक्तावादी हो गई है,जिसके कारण भारतीय सामाजिक संरचना तीतर - बितर हो रही है।
जीयर स्वामी जी ने कहा कि भागवत वेद रुपी कल्प वृक्ष का पक्का हुआ फल है। इस पर सभी का अधिकार है। कालान्तर में भगवान द्वारा लक्ष्मी जी को भागवत सुनाया गया। लक्ष्मी जी ने विश्वकसेन को, विश्वकसेन ने ब्रह्माजी, ब्रह्मा जी ने सनकादि ऋषि, सनकादि ऋषियों ने नारद जी, नारद जी ने व्यास जी, व्यास जी ने शुकदेव जी और शुकदेव जी ने सूत जी को सुनाया। बच्चा, बूढ़ा युवा और स्त्री सहित सभी वर्ग और धर्म के लोग इसका रसपान कर सकते हैं।
रिपोर्ट:- नितेश पाठक
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