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ग्रामीण पत्रकारों के हक-हुकूक के लिए अपने अंतिम सांस तक संघर्ष करते रहे संस्थापक अध्यक्ष बाबू बालेश्वर लाल जी


 



बलिया —उत्तर प्रदेश के बलिया जनपद के एक छोटे से गांव रतसड़़ में वर्ष 1930 को चंद्रिका प्रसाद और सुरती देवी के आंगन में एक बच्चे का जन्म होता है। पूरा परिवार बच्चे के जन्म पर खुशी से झूम उठता है।उन्हें क्या पता कि यही बच्चा आगे चलकर गरीब,शोषित और पीड़ितों की आवाज बनेगा।यही नहीं जहां भी किसी को दबाया जाएगा वह उसके पक्ष में उठ खड़ा होगा।कुछ इसी तरह का शोषण गांव के पत्रकारों के साथ भी पत्र मालिकों और शासन प्रशासन द्वारा लगातार किया जा रहा था।तमाम झंझावातों का सामना करते हुए गांव के पत्रकार अपने पत्रों को समाचार जूटा कर भेजते तो थे लेकिन न तो पत्र मालिक और न ही शासन-प्रशासन उन्हें वह सम्मान देता था जिसके वे हकदार थे।भला यह बात उस बच्चे को,जो अब प्रौढ़ बन चुका था को कैसे बर्दाश्त हो और तब उन्होंने  संकल्प लिया कि ग्रामीण पत्रकारों के हक और हुकूक के लिए मैं संघर्ष करूंगा और इसी का प्रतिफल रहा कि ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन की उन्होंने नींव रखी।जी हां हम बात कर रहे हैं ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन उत्तर प्रदेश के संस्थापक अध्यक्ष स्वर्गीय बाबू बालेश्वर लाल जी की। आइए उनके थोड़ा जीवन से रूबरू हो लिया जाए।उन्होंने प्राथमिक और मिडिल स्कूल की शिक्षा अपने जन्म स्थान रतसड़़ से ली थी।हाई स्कूल और इंटर की शिक्षा एलडी स्कूल बलिया से ग्रहण किया।बीए और एमए बीएचयू वाराणसी से किया।उनका विवाह गड़वार के प्रतिष्ठित वकील बाबू बालेश्वर लाल की सुपुत्री चंपा श्रीवास्तव से हुई थी।वह अपना जन्म स्थान छोड़कर गड़वार अपनी ससुराल आकर बस गए फिर वह यहीं के होकर रह गए।जंगली बाबा इंटर कॉलेज गड़वार में सिविक्स के लेक्चर पद नियुक्त हुए फिर ताउम्र बच्चों को शिक्षा देने का कार्य करते रहे।इसी में वह समाजवादी आंदोलन से भी जुड़े। हालांकि वह अध्ययन के समय भी समाजवादी आंदोलन से जुड़े रहे। संगठन बनाना उनके दिमाग में बराबर घूमता रहा।एक बार एक रिक्शा चलाने वाले को किसी ने पीट दिया था तो उन्होंने रिक्शा यूनियन बनवा दिया और उनके कंधे से कंधा मिलाकर जब तक उनकी मांग पूरी नहीं हुई तब तक चलते रहे।इसी क्रम उन्होंने बुद्धिजीवियों का एक संगठन लोकमंच बनाया था।पढ़ाई के समय काशी हिंदू विश्वविद्यालय में  छात्र सभा के महामंत्री का चुनाव लड़ा और युवा तुर्क रामधन को पराजित कर विजयश्री हासिल किया।उनके गुरु आचार्य आचार्य नरेंद्र देव जी थे।समाजवादी आंदोलन के उनके साथियों में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर,गौरी शंकर राय जैसे अन्य राजनीतिक शख्सियत सहयोगी बने रहे।सन 1969 में भारतीय क्रांति दल चौधरी चरण सिंह जी की पार्टी से वह कोपाचीट विधानसभा से विधानसभा का चुनाव भी लड़े।मामूली अंतर से चुनाव तो नहीं जीत सके लेकिन राजनीति से उनका मन उचाट जरूर हो गया।इसके बाद उन्होंने जनसेवा का माध्यम पत्रकारिता को बनाया और वह विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में अपना निबंध और समाचार भेजते रहे।इसी दरमियां उन्हें गांव के पत्रकारों की पीड़ा का एहसास हुआ और उन्होंने मात्र सात पत्रकारों को लेकर,8 अगस्त 1982 को अपने आवास पर एक बैठक किया जिसमें ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन उत्तर प्रदेश की स्थापना किया और संकल्प लिया कि वह ग्रामीण पत्रकारों के हक-हकूक के लिए संघर्ष करते रहेंगे और उनके इस संकल्प में उस बैठक में मौजूद सभी साथी सहभागी बने।फरवरी 1987 में इस संगठन का पहला प्रादेशिक सम्मेलन लखनऊ के गंगा प्रसाद मेमोरियल हाल में हुआ था।सम्मेलन से लौटने के बाद सभी जनपदों में सघन दौरा किया । और फिर 27 मई 1987 का वह काला दिन आ गया जिस दिन वह हम सब को छोड़कर स्वर्ग सिधार गए ।जिस संगठन को संस्थापक जी ने रोपित और सिंचित किया आज उनके सुयोग्य पुत्र सौरभ कुमार के नेतृत्व में पूरा वट वृक्ष बन चुका है।अब तो इस संगठन का राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार भी शुरू है और उम्मीद है कि यह संगठन यथाशीघ्र राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बनाएगा।

रिपोर्ट त्रयंबक पांडेय गांधी 



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