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मकर संक्रांति का पौराणिक और सांस्कृतिक महत्व : मयंक कुमार




गड़वार : मकर संक्रांति, एक प्रसिद्ध लोकप्रिय भारतीय त्यौहार जिसे पूरे देश में विभिन्न नामों से मनाया जाता है. इसे देश के अधिकांश भाग में संक्रांति के रूप में और अन्य भागों में कई अन्य नामों से जानते है. उत्तर में इसे लोहड़ी के रूप में, दक्षिण में पोंगल के रूप में, पूर्वी भारत में माघ बिहू (भोगाली बिहू) के रूप में मनाया जाता है. इस त्यौहार को अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम दिए गए हैं. कर्नाटक में इसे सुग्गी के नाम से जाना जाता है, केरल में मकर विलक्कू, उत्तराखंड में कुमाऊं के रूप में जबकि हिमाचल में माघ साजी के रूप में. कई नामों के साथ-साथ, यह विभिन्न रीति-रिवाजों और मान्यताओं को भी समेटे हुए है. यह स्थान के साथ भले ही भिन्न नामों से जानी जाती है, लेकिन लोगों के बीच समान उत्साह देखा जा सकता है. इसे किसानों के बीच फसल उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है क्योंकि यह मौसम में बदलाव की शुरुआत करता है. मकर संक्रांति को नेपाल, बांग्लादेश, थाईलैंड और म्यांमार में भी विभिन्न सांस्कृतिक रूपों और नामों के साथ मनाया जाता है. आइये इस मकर संक्रांति हम सभी भी सांस्कृतिक रूप में प्रसिद्ध त्यौहार के रूप में भौगोलीय परिवर्तन की जानकारी में डुबकी लगा कर मकर संक्रांति का आनंद लेते हैं. 


वैसे तो भारतीय समाज के सांस्कृतिक पहलू के पीछे कई वैज्ञानिक तथ्य छुपे हुए हैं. प्राचीन युग में वृहद् पैमाने पर किसी भी प्रथा का आकर्षण और उपयोगिता बनी रहे इसलिए वैज्ञानिक से ज्यादा सांस्कृतिक और धार्मिक पहलू से जोड़ दिया जाता था.


ज्योतिषीय महत्व के अनुरूप, मकर संक्रांति हिंदू कैलेंडर में एक अशुभ महीने, मलमास के अंत और सूर्य के राशि चिन्ह मकर में प्रवेश का प्रतीक है. यह त्यौहार उस दिन को चिह्नित करता है जब सूर्य अपनी उत्तरी यात्रा शुरू करता है और कर्क रेखा से मकर राशि में प्रवेश करता है. सूर्य का दक्षिण से उत्तर की ओर संक्रमण होता है इसलिए इसे "उत्तरायण" कहा जाता है. उत्तरायण एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ उत्तर की ओर गति करना है जिसे हिंदी में "उत्तर" कहा जाता है. इसी अवधारणा के साथ इसे मकर संक्रांति कहा जाता है क्योंकि मकर राशि की ओर संक्रमण होता है. सूर्य के प्रकाश के उत्तर से आने का विशेष महत्व है और माना जाता है कि यह अच्छे बल का उदय है और बुरी शक्तियों का प्रभाव कम हो जाता है. हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार सूर्य की ग्रह स्थिति में परिवर्तन होता है, जिसके आधार पर हिंदू कैलेंडर तय किया जाता है जिसे पंचांग के रूप में जाना जाता है. इसकी संक्रांति तिथि 14 जनवरी को तय की गई थी और माना जाता है कि यह संक्रमण की तिथि है, कई दशकों के बाद संक्रमण की स्थिति के संबंध में तिथि में बदलाव होता है. ज्योतिषियों द्वारा यह अनुमान लगाया गया है कि 2019 के बाद, यह 15 जनवरी को होगा और 2020 से इसी नई तिथि पर मनाया जाएगा. ज्योतिष में मकर राशि शनि देव की उच्च राशि मानी जाती है. मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव के मकर राशि में प्रवेश करने के चलते सूर्य और शनि का शुभ मिलन होता है. यह मिलन अशुभ प्रभावों को कम करता है और सुख-समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है. इसलिए इस दिन स्नान कर सूर्यदेव को अर्घ्य देना तथा तिल और गुड़ का दान देना और गुड़ से बना मिष्ठान खाना शुभ माना जाता है. मान्यता है कि इन अनुष्ठानों से पाप कटते हैं और सौभाग्य की वृद्धि होती है. वैज्ञानिक ध्येय से नदी में स्नान करने से आप अपने आप को प्राकृतिक रूप से शुद्ध कर नए शुरुआत के लिए खुद को तैयार करते हैं और सूर्य के प्रकाश से शरीर को नई ऊर्जा मिलती है.


यह सिर्फ कथा नहीं वरन प्राचीन ग्रंथों में वर्णित सत्य है. मत्स्य पुराण के अनुरूप मकर संक्रांति से ही वर्तमान युग कलियुग जिसमें हम सभी जी रहे हैं उसका आरंभ करीब ३१०२ ईसा पूर्व हुआ था तथा सूर्य सिद्धांत के अनुरूप १८ फरवरी ३१०२ ईसा पूर्व कलियुग जीवन आरम्भ हुआ था. प्राचीन उल्लेख में संक्रांति के दिन ही राजा भगीरथ की तपस्या से गंगा नदी का पृथ्वी पर पदार्पण हुआ और भगीरथ ने इसी दिन गंगा नदी में स्नान कर चावल और तिल से पूर्वजों का तर्पण किया था तत्पश्चात ऋषि कपिल मुनि के मार्गदर्शन में गंगा को कई पीढ़ियों को मुक्ति और मोक्ष प्रदान करने का वरदान मिला फिर वो समुद्र में जा मिली थी. भविष्य पुराण कहता है कि माता सीता के अश्विन शुक्ल त्रयोदशी के हुए हरण तथा भाद्रपद में भगवान हनुमान के लंका दहन के बाद भगवान राम ने संक्रांति के दिन लंका चढ़ाई योजना को मूर्त रूप दिया था। मकर संक्रांति के एतिहासिक पक्ष का उल्लेख करते हुए पुष्कल फाउंडेशन के संस्थापक मयंक कुमार ने बताया कि महाभारत में भी उल्लेख है कि युधिष्ठिर ने संक्रांति के दिन राजसूय यज्ञ (एक वैदिक यज्ञ जिसे कोई राजा चक्रवर्ती सम्राट बनने के लिए करते थे) का आयोजन आरम्भ किया था. ऐसे में ये तिथि सिर्फ मौसम परिवर्तन का संकेत नहीं, बल्कि प्राचीन काल से जुड़े अनेक ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व को समेटे हुए है। मकर संक्रांति सिर्फ पौराणिक कथाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विविधता का उत्सव भी है। यह विभिन्न प्रदेशों में विविधता में एकता के प्रतीकात्मक रूप में प्रचलित है। पंजाब में लोहड़ी की लपटें देवलोक तक रोशनी फैलाती हैं, तो तमिलनाडु में पोंगल की खुशबू घर-घर में फैलती है. असम में बिहू के रंग धरती को थिरकाते हैं, तो केरल में विशु की रंगोली देवताओं का स्वागत करती है. हर क्षेत्र में मकर संक्रांति को उसी की परंपराओं और रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है, जिससे इस पर्व का स्वरूप और भी मनमोहक हो जाता है। 


प्राचीन भारत के शास्त्रीय युग से ही नदी या तालाब के किनारे बच्चों के लिए मनोरंजन मेला आयोजित करने की परंपरा रही है। जहां परिजन पवित्र स्नान कर पुण्य पाने की लालसा से एक नई शुरुआत करते हैं। साथ हीं  नदी तट पर नहाते समय बच्चों के मनोरंजन हेतु मेले में आप स्थानीय पारम्परिक खिलौने का आनंद लेते हुए वहां के लोगों की कारीगरी का अनुभव भी कर सकते हैं।



रिपोर्ट : धनेश पाण्डेय

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