गंवई परंपरा पर चढ़ा आधुनिकता का रंग, ना जोगीरा,ना चौताल,गुम हो रही परंपराएं
गड़वार (बलिया) स्थानीय क्षेत्र के जनऊपुर गांव में मंगलवार की देर रात में आयोजित फाग के राग कार्यक्रम में बड़े बुजुर्ग व बच्चों ने मिलकर जमकर होली गीत गायन किया।अबीर गुलाल से सराबोर युवाओं ने देर रात तक डीजे की धुन पर आधुनिक होली गीत पर खूब मस्ती किया। लेकिन होली खेलें रघुबीरा अवध में,आज बिरज में होली रे रसिया जैसे चईता फाग बीते दिनों की बात हो गई। गांवों में अब ढोल मजीरे तक की आवाज नहीं सुनाई देती। गंवई परंपराओं पर आधुनिकता का रंग चढ़ गया है। इनका स्थान होली के फाग गीतों की जगत भोजपुरी अश्लील भरे गीतों ने ले लिया है। कुछ गांवों में जैसे तैसे इस परंपरा को बनाए रखने की औपचारिकता निभाई जा रही है। बुजुर्गों की माने तो गांवों में इन परंपराओं को लोग भली भांति निभाते थे,बसंत पंचमी से ही गांवों में फागुनी गीतों की बयार बहने लगती थी।फागुन के गीतों में चौताल,चैता और बारहमासा आदि के माध्यम से भारतीय लोक संस्कृति की छाप देखने को मिलती थी। गांवों में एक साथ बैठकर फाग गीतों के गाने से लोगों के बीच आपसी प्रेम और सौहार्द कायम रहता था। लेकिन लोक कलाओं के विलुप्त होने से समाज में आपसी वैमनस्यता बढ़ गई है। अब आधुनिकता के आपाधापी भागदौड़ में होली उत्सव का प्यार, स्नेह व भाईचारा भी विलुप्त होने के कगार पर दिख रहा है।
रिपोर्ट : धनेश पाण्डेय
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