बलिदान दिवस पर कवियों ने बांधा समां,अब तो दीवारे नफरत कि गिरा दीजिए...
गड़वार (बलिया) कस्बा के रामलीला मंच पर शनिवार की देर रात में बलिदानी भगत सिंह,सुखदेव व राजगुरू के बलिदान दिवस के अवसर पर कवि सम्मेलन एवं मुशायरा का आयोजन किया गया। इसमें कवियों ने अपनी रचनाओं द्वारा लोगों में देशभक्ति का जज्बा भरा। कवि शिवजी पाण्डेय"रसराज" ने दीप प्रज्जवलन किया। कार्यक्रम की शुरुआत कवि बृजमोहन प्रसाद अनाड़ी ने सरस्वती वंदना से किया। सम्मेलन के संयोजक बब्बन सिंह बेबस ने सभी आगन्तुक कवियों को माला पहनाकर व अंगवस्त्र देकर अभिनंदन किया। बलिया के कवि मुकेश चंचल ने " गीत जिनगी के गाई कहां,आग मन के बुझाई कहां" रचना सुनाकर मुग्ध कर दिया। कवि बब्बन सिंह बेबस ने " चाहे तू हर खुशी छिन ले पर ए खुदा मेरा नाम आदमी रख दे " इंसानियत पर अपनी रचना सुनाकर लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया।कवि बृजमोहन प्रसाद अनाड़ी ने" रंगाई अब चुनरी एहि फागुन में, कुहूंकी कुहूंकी कोयलिया बतावे होली की रचना सुनाई। गाजीपुर के कवि मिथिलेश गहमरी ने " प्यार के फासले सब मिटा दीजिए,अब तो दीवारे नफरत कि गिरा दीजिए, होलिया तो लहु की बहुत हो चुकी, है जरूरत दिलों को मिला दीजिए" रचना सुनाकर सबको विभोर कर दिया। कुशीनगर के कवि फिरोज अश्क ने" ये न समझो हिन्दु मुसलमान हैं हम, हिन्दुस्तां के दोनों हांथ व आब हैं हम " इंसानियत की रचना सुनाया। कुशीनगर की कवियत्री सविता सुमन ने " लाश रोती रही कफन के लिए, चांदनी आह भरती रही चमन के लिए" रचना सुनाया। कवि राजेन्द्र सिंह गंवार ने" अपने चेहरे से पर्दा हटा लिजिए,है गुजारिश कि बस मुस्करा दीजिए तथा कवि गयाशंकर प्रेमी ने " अमवा जब मोजराए त जनिह फागुन ह,पछुवा जब सिसकारी मारे त जाड़ा भागे अपने आप" हास्य रचना सुनाकर लोगों को गुदगुदाया। वहीं कवि सुनील सिंह समाजवादी, आदित्य गुप्ता, रमाशंकर यादव व विन्ध्याचल सिंह ने अपनी रचना सुनाकर लोगों को आत्म विभोर कर दिया। देर रात तक दर्शक जमे रहे। अध्यक्षता विन्ध्याचल सिंह व संचालन मिथिलेश गहमरी ने किया। इस अवसर पर पिंटू सिंह,सतीश उपाध्याय,शाहनवाज खान,अंजनी गुप्ता,गाजी सलाहुद्दीन, लक्की सिंह,धन्नू आदि मौजूद रहे।
रिपोर्ट : धनेश पाण्डेय
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