भूगर्भ जल संरक्षण के लिए नहीं की उपाय तो भावी पीढ़ी झेलेगी संकट
बलिया। जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय के लोकपाल एवं पर्यावरणविद् डॉ. गणेश पाठक ने कहा कि भू-गर्भ जल का अंधाधुंध दोहन भावी पीढ़ी के लिए खतरे की घंटी है। अनावश्यक जल विदोहन और जल संरक्षण के प्रति बरती जा रही उदासीनता से बलिया सहित पूर्वांचल के जिलों में भू-गर्भ जल की स्थिति धूमिल क्षेत्र के अंतर्गत आ गई है,जो निकट भविष्य में पूर्वांचल में घोर जल संकट उत्पन्न होने का संकेत है। इससे बचाव का एकमात्र उपाय जल संरक्षण के उपाय को बढ़ावा देना और भू-जल के अनियंत्रित एवं अतिशय दोहन और शोषण एवं उपयोग पर रोक लगाना है।
डॉ. पाठक ने कहा कि बलिया सहित पूर्वांचल के जिलों में भू-गर्भ जल की स्थिति को बेहतर नहीं कहा जा सकता। देखा जाए तो आजमगढ़, मऊ, बलिया, जौनपुर, गाजीपुर, चंदौली, वाराणसी, संत रविदास नगर, मिर्जापुर एवं सोनभद्र जिलों में शुद्ध पुनर्भरण जल क्षमता क्रमशः 1329, 483, 890, 1243, 1251, 717, 486, 400, 478 एवं 211 मिलियन घनमीटर, शुद्ध जल निकास क्षमता क्रमशः 865, 338, 589, 1106, 856, 273, 419, 370, 361 एवं 91 मिलियन घनमीटर तथा भू-गर्भ जल विकास स्तर क्रमशः 65.70, 69.90, 66.24, 88.98, 68.45, 38.02, 86.28, 92.25, 62.38 एवं 43,12 प्रतिशत है। इसके अनुसार आजमगढ़, मऊ, बलिया एवं गाजीपुर जिले धूमिल संभावना क्षेत्र के अंतर्गत आ गए हैं, जबकि जौनपुर, वाराणसी एवं संत रविदास नगर जिले संभावना विहीन क्षेत्र के अन्तर्गत आ गए हैं। यानि इन जिलों में भू-जल दोहन को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए। धूमिल संभावना क्षेत्र वाले जनपदों में भी जल उपयोग को संतुलित किया जाना चाहिए। इन सभी जनपदों में जल विदोहन करना प्रकृति के साथ खिलवाड़ है।
भू-गर्भ जल में गिरावट के प्रमुख कारण
-वर्षा वितरण में असमानता एवं वर्षा में कमी का होना।
-अधिकांश क्षेत्रों में सतही जल का अभाव।
-पेयजल आपूर्ति हेतु भू-जल का अधिक दोहन।
-सिंचाई हेतु भू-जल का अत्यधिक दोहन।
-उद्योगों हेतु भू-जल का अत्यधिक दोहन।
भू-जल की कमी से उत्पन्न समस्याएं
-भू-जल स्तर का निरन्तर नीचे की तरफ खिसकना।
-भू-जल में प्रदूषण की समस्या में वृद्धि।
-पेयजल आपूर्ति की समस्या में वृद्धि।
-सिंचाई जल की कमी से कृषि पर प्रभाव।
-भू-जल की गुणवत्ता में कमी।
-भू-जल का अत्यधिक लवणतायुक्त होना।
-पेयजल आपूर्ति का घोर संकट उत्पन्न होना।
-भू-जल की कमी एवं जल का प्रदूषित होना।
-आबादी वाले क्षेत्रों में जल आपूर्ति की कमी होना।
भू-गर्भ जल दोहन रोकने हेतु उपाय
पर्यावरणविद् डॉ. गणेश पाठक ने कहा कि भू-जल समस्या का एकमात्र उपाय भू-जल में हो रही कमी को रोकना है। प्रत्येक स्तर पर भू-जल के अनियंत्रित एवं अतिशय दोहन और शोषण एवं उपयोग पर रोक लगाना आवश्यक है। पुराने जल स्रोतों को पुनर्जीवित करना होगा। जल ग्रहण क्षेत्रों में अधिक से अधिक पौधरोपण करना होगा ताकि प्राकृतिक रूप से जल का पुनर्भरण होता रहे। साथ ही कुल वर्षा जल का कमसे कम 31 प्रतिशत जल धरती के अंदर प्रवेश कराने की व्यवस्था करनी होगी। इसके लिए वर्षा जल संचयन (रेन वाटर हार्वेस्टिंग) को बढ़ावा देना होगा।
By- Dhiraj Singh
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