छठ महापर्व में कोई पांडित्य नहीं,आस्था ही पांडित्य है : धनेश
गड़वार (बलिया) सूर्योपासना का अद्वितीय व बहुआयामी लोकपर्व है “छठ”। आस्था के इस लोकपर्व में विभिन्न प्रकार का जीवन संदेश समाया है। यह संसार का एकमात्र ऐसा पर्व है,जो उदय और अस्त दोनों को एक समान महत्व प्रदान करता है। उदय होते को भी नमन और अस्त होते हुए को भी समान आस्था, समर्पण के साथ छठ महापर्व को वंदन-नमन है। पहले अस्त होते सूर्य के प्रति आभार प्रकट करना और फिर उगते सूर्य के प्रति आस्था प्रकट करते हुए स्वागत करना इस लोकपर्व को और अधिक वरेण्य बनाता है। ‘सूर्य’ केन्द्रित सांस्कृतिक पर्व छठ का संदेश साफ व सरल है- ‘वही उगेगा,जो डूबेगा'। डूबने वाला उगता ही है और उगने वाला अंतत: डूबता ही है। इन्हीं दो किनारों के बीच जीवन चक्र चलता है। प्रकृति की उपजों के अद्भुत मिलन का यह पर्व है,जो निर्मल हृदय से सबको साथ लेकर चलने का मनोहारी दृश्य उत्पन्न करता है। इस लोकपर्व में कोई पांडित्य नहीं,आस्था ही पांडित्य है। इसका पांडित्य बहुत ही लचीला है,सरल है। कोई अदृश्य देवता नहीं। सब प्रत्यक्ष है। इसके आराध्य देवता सूर्य हैं जो दृश्य हैं,प्रत्यक्ष हैं। सूर्य ही दीनानाथ हैं।यह सूर्य ही हैं जो पृथ्वी पर जीवन को संचालित करते हैं,उसे उर्वरता प्रदान करते हैं, ऊर्जा से भर देते हैं और चहुंओर सौन्दर्य की वर्षा करते हैं। तभी तो व्रती के स्वर कुछ इस प्रकार प्रस्फुटित होते हैं ‘'आहो दीनानाथ..., जल बिच खाड़ बानी..., कांपेला बदनवा...,दर्शन दीहीं ए दीनानाथ..‘' कोई अदृश्य देवी नहीं, गंगा मइया ही देवी हैं, सभी नदियां देवी हैं,जो दृश्य हैं। सभी सरोवर देवी स्वरूप हैं। कोई कृत्रिमता नहीं, प्रकृति से उपजे फल,कंद-मूल सभी का समर्पण, उस देव को जो इन्हें उपजाने में अपनी महती भूमिका निभाता है। ऊर्जा,ताप के स्त्रोत भाष्कर ही तो हैं। समर्पण उस देवी को जो जीवन देती है, जिसके तट पर सभ्यता पनपी, विकसित हुई, पुष्पित व पल्लवित हुई। कोई भेद-भाव नहीं।सभी एक होकर घाट पर जाते हैं।न जाति, न धर्म,न गरीब,न अमीर,सब भेद मिट जाते हैं। सभी एकाकार होकर प्रत्यक्ष देवता दिनकर के प्रति आभार जताते हैं। छठी मैया का स्मरण करते हुए सूर्य को अर्घ्य देना इसे बहुत ही विशिष्ट बनाता है,जो इस लोकपर्व को अनवरत समृद्ध कर रहा है। भावों से भर जाना इस लोकपर्व की विशेषताओं में शामिल है।
रिपोर्ट: धनेश पाण्डेय
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